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Khatu Shyam Temple: राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम का मंदिर है। हर साल फाल्गुन महीने में यहां 11 दिनों का मेला लगता है। लोग दूर-दराज से यहां शामिल होने आते हैं। 

Khatu Shyam Temple: खाटू श्याम पर हर साल फाल्गुन माह शुक्ल षष्ठी से बारस तक मेला लगता है। यह मेला ग्यारह दिन तक चलता है। अब अगला महीना फाल्गुन का है। ऐसे में एक बार फिर खाटू श्याम मंदिर के पास मेला लगने वाला है। इस मेले में दूर-दराज से श्याम भक्त आते हैं और बाबा श्याम का आशीर्वाद लेते हैं। साथ ही मेले में लगी दुकानों से खरीदारी करते हैं और सांसकृतिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं। 

हारे का सहारा कहे जाते हैं खाटू श्याम

बता दें कि राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में बाबा खाटू श्याम का मंदिर है। इस मंदिर को लेकर भक्तों में खासी श्रद्धा है। इन्हें 'हारे का सहारा' नाम से भी जाना जाता है। खाटू श्याम भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माने जाते हैं। वो एक धनुर्धर थे और घटोत्कच के पुत्र थे, जिनका पुराना नाम बर्बरीक था। घटोत्कच महाभारत के भीम के बेटे थे। बर्बरिक को खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। भीम की पत्नी का नाम हिडिम्बा था। हिडिम्बा घटोत्कच की मां थी। 

पिता घटोत्कच से ज्यादा शक्तिशाली और मायावी थे बर्बरीक

कहा जाता है कि बर्बरीक एक ऐसे धनुर्धर थे, जो एक ही तीर से पीपल के पेड़ के सारे पत्तो को भेद सकते थे। बर्बरीक देवी के उपासक थे और देवी के वरदान से उन्हें तीन दिव्य तीर मिले थे। बर्बरीक अपने पिता घटोत्कच से ज्यादा मायावी और शक्तिशाली थे। एक परीक्षा में खरा उतरने के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि वर्तमान में तुम्हें मेरे नाम से जाना और पूजा जायेगा।

श्रीकृष्ण ने ली बर्बरीक की परीक्षा

एक बार की बात है जब अर्जुन और श्रीकृष्ण बर्बरीक की वीरता को देखना चाहते थे। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी, कि इस पेड़ के सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दोगे, तो मान जाऊंगा। घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को पेड़ की ओर छोड़ दिया। तीर पेड़ के पत्तों को एक-एक करके भेद रहा था तभी एक पत्ता नीचे गिर गया। श्रीकृष्ण ने उस पत्ते को अपने पैर के नीचे दबा लिया। तीर सारे पत्तों को छेदने के बाद श्रीकृष्ण के पैर के पास आकर रुक गया।

तब बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से कहा प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता है और आप अपना पैर पत्ते से हटा लीजिए। मैंने अपने तीर को पत्तो को छेदने की आज्ञा दे रखी है, आपके पैर छेदने की नहीं। इसलिए आप पैर हटा लीजिए। ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण बर्बरीक के चमत्कार से चिंतित हो गये। बर्बरीक ने प्रतीज्ञा कर रखी थी कि महाभारत की लड़ाई में कौरव और पांडव पक्ष में से जो पक्ष हारेगा उसी की तरफ से लड़ूंगा। बर्बरीक की इस प्रतिज्ञा से सोच में पड़ गये।

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से मांगा शीश

भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की इस प्रतिज्ञा का हल निकला। श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर बर्बरीक के शिविर पहुंच गये और दान मांगने लगे। बर्बरिक ने ब्राह्मण से कहा बोलो-ब्राह्मण क्या चाहिए? ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा-  मुझे जो चाहिए आप दे नहीं सकोगे। ब्राह्मण ने बर्बरिक से उसका शीश मांग लिया। तब बर्बरिक ने खुशी-खुशी पाडंवों की विजय के लिए अपना शीश ब्राह्मण को दान में दे दिया।

श्रीकृष्ण ने दिया वरदान

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर एक वरदान दिया। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियग में पूजे जाने का वरदान दिया। जिस स्थान पर श्रीकृष्ण ने बर्बरिक का शीश रखा उस जगह का नाम खाटू है। आज बर्बरीक को पूरे भारत में खाटू श्याम बाबा के नाम से पूजा जा रहा है। खाटू श्याम बाबा राजस्थान के शेखावाटी के शिखर जिले में है। खाटू श्याम का मंदिर बहुत प्राचीन है। खाटू श्याम बाबा श्रीकृष्ण के कलियुगी अवतार माने जाते हैं। 

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