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Muktidham mukam: मुक्ति धाम मुकाम, आस्था का ऐसा केंद्र जहां जीवों, प्राणियों और पर्यावरण बचाने और उसकी रक्षा करने का उपदेश मिला। यह मंदिर गुरु जंभेश्वर का समाधिस्थल है।

Muktidham mukam: राजस्थान के बीकानेर के नोखा तहसील में एक गांव है मुकाम, जहाँ पर 'मुक्तिधाम मुकाम' नाम का मंदिर है। यह मंदिर बिश्नोई समाज के लिए बेहद अहमियत रखता है, इसलिए इसे बिश्नोई समाज का मंदिर भी कहा जाता है। यह बिश्नोई समाज का बड़ा और मुख्य मंदिर है। यहां भगवान गुरु जंभेश्वर की पवित्र समाधि बनी हुई है।

गुरु जंभेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को वचन दिया था कि वे बारह करोड़ जीवों का उद्धार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेंगे। उन्होंने अपने वचन को पूरा करने के लिए जंभेश्वर भगवान के रूप मे अवतार लिया। जंभेश्वर भगवान को जांभोजी भी कहा जाता है। 

बिश्नोई समाज के 29 नियम

गुरु जंभेश्वर ने 29 नियमों के साथ बिश्नोई समाज की स्थापना की। ये नियम बिश्नोई समाज के लिए काफी महत्व रखते हैं। हालांकि ये नियम सभी इंसानों के लिए हैं, किसी जाति विशेष से इसका संबंध नहीं है। लेकिन बिश्नोई समाज इन नियमों का कड़ाई से पालन करता है। 

बचपन में जंभेश्वर महाराज

बता दें कि बिश्नोई समाज के संस्थापक जंभेश्वर जी का जन्म भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को संवत् 1508 में नागौर से लगभग 45 किलोमीटर दूर पीपासर गाँव में हुआ था। कहा जाता है कि 7 साल की उम्र मे उन्होंने पहला शब्द 'सबद' कहा था जिसे 'सबदवाणी' माना जाता है। 

बिश्नोई समाज की स्थापना और 29 नियम

विक्रम संवत 1542 में जंभेश्वर महाराज ने समराथल धोरे पर कलश की स्थापना करके लोगों को अभिमंत्रित जल देकर बिश्नोई पंथ की स्थापना की। साथ ही 29 नियमों को मानने का भी उपदेश दिया। 29 नियमों में पर्यावरण की रक्षा, प्राणियों पर दया करना, शाकाहारी रहना और जीव दया करने का नियम भी है। 

काबुल से श्रीलंका तक की यात्रा

उन्होंने 51 साल तक समराथल धोरे पर उपदेश दिया। 7 सालों तक वे मौन व्रत में रहे। 27 साल उन्होंने पशु चराए। उन्होंने तपस्या और धर्म उपदेश के सार कई देशों का भ्रमण किया। इस दौरान वे काबुल, श्रीलंका, ईरान, इराक आदि भी गए। 

क्यों आस्था का केंद्र है मुक्तिधाम मुकाम

गुरु जंभेश्वर ने नोखा तहसील के लालासर गांव के पास ही जंगल मर स्थित कंकेडी खेड़ी के पास अपने शरीर को त्याग दिया। उनके साथ ही उनके शिष्यों ने भी बड़ी तादाद में अपना शरीर त्याग दिया। जिसके बाद गुरु जंभेश्वर के भौतिक शरीर को मुक्तिधाम मुकाम में रख दिया गया। जहां भी जंभेश्वर महाराज गए थे, बिश्नोई समाज उन जगहों को तीर्थस्थल मानता है।

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