pathar mar holi : फागुन का महीना शुरू होते हैं। लोगों पर रंगों का खुमार सर चढ़कर बोलने लगता है। होली रंगों का त्योहार है। होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत है। बसंत के आगमन के प्रतीक के रूप में रंगों के साथ होली का त्योहार मनाया जाता है। होली को लेकर देश के अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग तरह की परंपराएं मौजूद है।
जहां यूपी के बरसाना और नंदगांव लठमार होली के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है तो केरल अपने हल्दी पानी वाली होली के लिए फेमस है तो वही राजस्थान का डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव में पत्थरमार होली खेलने के लिए जाना जाता है। पूरे भारत देश में इकलौता ऐसा गांव है जहां पत्थरों से होली खेली जाती है। पत्थर मार होली को राड़ भी कहा जाता है।
जाने पत्थर मार होली मनाने का तरीका
भीलूड़ा गांव के लोग पिछले 200 सालों से पत्थरमार होली खेल रहे हैं। इस गांव के लोग पत्थरों से होली खेलना शगुन मानते है। होली वाले दिन भारी संख्या में लोग स्थानीय रघुनाथ मंदिर में आते हैं और दो टोली बनाकर होली खेली जाती है। दोनों टोली एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू कर देते है। वही घायलों को नजदीकी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती भी करवाया जाता है।
होली मनाने के पीछे की मान्यता
गांव वालों का मानना है कि पत्थर मार होली से जोखन गांव के जमीन पर गिरती है उससे कोई भी विपत्ति नहीं आती। इस पत्थर मार होली में पत्थरों से बचने के लिए गांव वाले अपने साथ ढाल,गमछा,रूमाल,थाली साथ लेकर आते हैं। होली करीब 3 घंटे तक खेल जाती है जिसको देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग आते हैं। दर्शन किसी सुरक्षित वह ऊंची जगह पर बैठकर इस खेल का आनंद लेते हैं। लेकिन वक्त के साथ इस खेल का स्वरूप भी बदलते गया। खेल की भावना से जाने जानी वाली यह होली अब इसमें आपसी रंजिश भी निकली जाती है।