Rajasthan First Women Sarpanch: राजस्थान का खीचन गांव एक खास वजह से पूरे भारत में जाना जाता है। इस गांव की छगन बहन गोलेच्छा प्रदेश की पहली महिला सरपंच रही है। साल 1961 में उन्होंने अपना पद संभाला था। 31 साल की उम्र में वह गांव की सरपंच बनी। इससे उन्होंने न केवल इतिहास में अपना नाम दर्ज किया बल्कि प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के कई नए द्वार भी खोले। इनसे प्रेरणा लेकर कई महिलाएं आगे आई और सरपंच के लिए चुनाव में खड़ी हुई।
13 साल तक संभाला सरपंच का पद
एक समय था जब प्रदेश में महिलाओं को बाहर जाकर काम तो दूर की बात, घरों में भी कैद किया जाता था। आज भी कई ऐसी महिला सरपंच हैं जो केवल दिखावे के लिए पद संभाल रही है, उनके बजाय सारा काम उनके परिवारजनों द्वारा किया जाता हैं। लेकिन इसके विरोध जाकर छगन बहन ने इस पद को संभाला और अपने पति की सिफारिश को नकारते हुए उन्हें करारा जवाब दिया।
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साल 1961 में छगन बहन गोलेच्छा ने रेवत सिंह राजपुरोहित को चुनाव में हराकर राज्य की पहली महिला सरपंच होने का गौरव हासिल किया। उन्होंने लगातार 13 साल तक यह पद संभाला।
गांव में शुरू किया था स्वच्छता अभियान
गांधीवादी विचारधारा की छगन परंपरावादी जैन ओसवाल परिवार से थी। उनका जन्म महाराष्ट्र के नागपुर शहर में हुआ था और उन्होंने वहीं से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। साल 1946 में उनकी शादी हो गई जिसके बाद वे राजस्थान के खीचन गांव आ गई। गांव में उन्होंने महिलाओं के कई बड़े काम कराएं।
साथ ही सबसे पहला स्कूल भी उन्होंने ही खोला। गांव में बढ़ती गंदगी को देखते हुए उन्होंने सफाई अभियान की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर यात्राएं की। उनके इस कार्य से खुश होकर ग्रामीणों ने उन्हें चुनाव में जिताया और पहली महिला सरपंच बनाया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने दलितों के लिए घर बनवाए। इसके बाद उन्होंने साल 1975 में सुचेता कृपलानी संस्थान की स्थापना की।