Rana Sanga History: भारतीय इतिहास के पन्नों में राणा सांगा का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ। राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 में हुआ था । वें उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे। राणा सांगा मेवाड़ में सबसे महत्वपूर्ण शासक थे। साथ ही महाराणा कुंभा के बाद में सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे। राणा सांगा ने लगभग 100 लड़ाइयां लड़ी थी और अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया था। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
राणा सांगा-मानवों का खंडहर
मेवाड़ के इलाकों में जन्मे और पले-बढ़े राणा सांगा का पालन पोषण वीरता और सम्मान की परंपराओं के बीच हुआ। युद्ध में एक हाथ, एक पैर, एक आंख और एक कान खो देने के बावजूद भी राणा सांगा का दृढ़ संकल्प कभी नहीं डगमगाया। उनके शरीर पर लगभग 80 घाव हो चुकें थे लेकिन वे तब भी लड़ते रहते थे। उनके घावों के कारण उन्हें 'मानवों का खंडहर' भी कहा जाता था। उनकी वीरता के इतने चर्च थे कि मुगल शासक बाबर ने भी प्रसिद्ध बाबरनामा में उनकी बहादुरी का जिक्र किया है।
इब्राहिम लोदी को चटाई थी धूल
सिकंदर लोदी के समय में राणा सांगा ने दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। खतौली, जो कि कोटा के पास स्थित है, में एक भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा विजय हुए। लेकिन इसी युद्ध में उनका बाया हाथ कट गया और उनके घुटने में गंभीर चोट लग गई थी। जिससे वह जीवन भर के लिए लंगड़े हो गए थे। लेकिन राणा सांगा ने हार नहीं मानी और अपना प्रतिरोध जारी रखा। इब्राहिम लोदी द्वारा भेजी गई एक और सेना को राणा सांगा ने खदेड़ दिया। इब्राहिम लोदी ने हार का बदला लेने के लिए, अपने सेनापति मियां माखन के साथ एक सेना भेजी। बाड़ी धौलपुर के पास बाड़ी युद्ध 1518 ई को लोदी सेना को परास्त करने के बाद सांगा ने लोदी का बयाना तक पीछा किया।
बाबर से युद्ध
तैमूर और चंगेज़ खान के वंशज बाबर ने लंबे समय तक हिंदुस्तान की उपजाऊ भूमि में अपने साम्राज्य का विस्तार करने की ख्वाहिश रखी थी। काबुल की सत्ता को मजबूत करने के लिए 16वीं शताब्दी में बाबर ने हिंदुस्तान का रुख किया। राणा सांगा की सैन्य सूझ बूझ तब सामने आई जब उन्होंने बाबर की बढ़त को चुनौती दी। उसके बाद फरवरी 1527 में कुछ ऐसा हुआ जिससे बाबर के सैनिकों के दिलों में डर पैदा हो गया। राणा सांगा ने बयाना पर विजय प्राप्त करके राजपूतों का मनोबल बढ़ाया।16 मार्च 1527 को खानवा की लड़ाई के दौरान राणा सांगा की एक आंख में तीर लग गया। इसके बाद यह युद्ध बाबर के पक्ष में झुक गया।
इब्राहिम लोदी और बाबर दोनों के खिलाफ राणा सांगा के युद्ध ने राजपूत राज्यों और उभरती हुई शाही शक्तियों के बीच एक व्यापक संघर्ष को रेखांकित किया। उनके पोते महाराणा प्रताप ने प्रतिरोध की मसाला को हमेशा जलने दिया और यह सुनिश्चित किया कि राजपूत वीरता की भावना हमेशा बनी रहे और राजपूताना का नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो जाए।