Surwal Village Biogas Plant: मौजूदा समय में किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। इसके कारण यूरिया जैसे रासायनिक खाद की बढ़ती कीमतें और समय पर इसकी अनुपलब्धता है। फसलों पर लंबे समय तक रासायनिक खादों के इस्तेमाल से उपज क्षमता पर असर पड़ता है। इसके अलावा खेतों की मजबूती में भी कमी देखी जा रही है। हालांकि, जल्दी और अधिक उपज की चाह में किसान रासायनिक खादों की ओर बढ़ते रहे हैं।
लेकिन यूरिया जैसे रासायनिक खाद की दिनों-दिन बढ़ती कीमतों ने किसानों की जेब पर असर डाला है। इसी बीच राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के किसान भाइयों ने रासायनिक खादों की जगह पारंपरिक स्रोतों से बायोगैस बनाने का तरीका खोज निकाला है। इससे खेतों में लहलहा रही फसलों को नया जीवन मिल रहा है। इसके अलावा बायोगैस का इस्तेमाल रसोई और घरेलू प्रयोग के लिए बिजली बनाने में भी किया जा रहा है।
भैंस के गोबर से बायोगैस का उत्पादन
सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से करीब आठ किलोमीटर दूर सूरवाल गांव स्थित है। आज यह गांव अपना बायोगैस प्लांट बनाने के लिए देशभर में चर्चा में है। यहां के प्रगतिशील किसान जानकीलाल मीणा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। कृषि के क्षेत्र में उनके नवाचार के लिए अब देश-विदेश की मीडिया में उनकी चर्चा हो रही है।
दरअसल, जानकीलाल मीणा ने बायोगैस प्लांट बनाकर मौजूदा समय में किसानों की समस्याओं और उनके परिवार के पालन-पोषण आदि में उनकी जेब पर पड़ने वाले असर का हल ढूंढ लिया है। आए दिन महंगी होती जा रही खाद, बिजली और रसोई गैस के दाम किसान परिवार का बजट बिगाड़ता रहा है।
लेकिन जानकीलाल मीणा की मानें तो वे पिछले 20 सालों से अपनी भैंस के गोबर से खुद का बायोगैस बना रहे हैं और खेत से लेकर घर तक की जरूरत के सारे काम कर रहे हैं। इनमें बायोगैस से रसोई में चूल्हा चलाना, अल्टरनेटर से बिजली उत्पादन और इसके अवशेष से खेतों के लिए प्राकृतिक व जैविक खाद बनाना आदि शामिल है।
बायोगैस ने बदल दी किस्मत
जानकीलाल मीणा के अनुसार बायोगैस प्लांट से निकलने वाले अवशेषों का उपयोग खेतों में जैविक और प्राकृतिक खाद के रूप में किया जाता है। इससे रासायनिक खेती की तुलना में अधिक उपज मिलती है और खेतों की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है। उन्होंने आगे बताया कि बायोगैस प्लांट के लिए हमें एक से अधिक भैंस पालना जरूरी नहीं है। क्योंकि हम एक भैंस से 4 से 5 घंटे तक बायोगैस का उत्पादन कर सकते हैं। खुद का बायोगैस होने की वजह से बढ़ती महंगाई का असर हम जैसे किसानों पर नहीं पड़ता।
आपको बता दें कि बायोगैस की रासायनिक संरचना मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प, नाइट्रोजन और हाइड्रोजन सल्फाइड का मिश्रण है। जिसे मवेशियों के गोबर आदि से बनाया जा सकता है। इसकी मदद से किसान अपनी खेती और आम दैनिक गतिविधियों के बजट को नियंत्रित कर सकते हैं।
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