rajasthanone Logo
Rajasthani Dish: आपने दाल बाटी चूरमा तो खाया ही होगा लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई। आज के‌ इस लेख में हम आपको बताएंगे दाल बाटी चूरमा के प्रारंभिक इतिहास के बारे में।

Rajasthani Dish: राजस्थान यूं तो अपने समृद्ध इतिहास, शाही महल और भव्य किलों के लिए मशहूर है लेकिन इसी के साथ-साथ यहां के स्वादिष्ट व्यंजन भी देश विदेश में अपनी छाप छोड़ते हैं। आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे ही व्यंजन के बारे में, जिसका नाम है दाल बाटी चूरमा। आईए जानते हैं क्या है इसका इतिहास। 

दाल बाटी चूरमा का प्रारंभिक इतिहास 

दाल बाटी चूरमा सदियों से सिर्फ एक व्यंजन ही नहीं बल्कि राजस्थान की परंपरा के रूप में पेश हुआ है। लोगों के मुताबिक इसकी उत्पत्ति मेवाड़ साम्राज्य के संस्थापक बप्पा रावल के समय की है। 

बाटी का जन्म 

ऐसा कहा जाता है कि राजपूत योद्धा युद्ध में जाने से पहले गेहूं के आटे को गूंथकर गर्म रेत के नीचे दबा कर जाते थे। रेगिस्तान के सूरज की तेज गर्मी से पूरा दिन वह आटा धीरे-धीरे पकता रहता था। युद्ध से लौटकर आने पर सैनिक इन पकी हुई बाटियों को खोदते थे और उन पर घी लगाकर दहीं  या छाछ के साथ खाते थे।

पंचमेल दाल का आविष्कार 

पंचमेल दाल का आविष्कार तब हुआ था जब गुप्त साम्राज्य के व्यापारी मेवाड़ में आकर बसे थे। दरअसल यह व्यापारी अपने साथ अलग-अलग किस्म की दाल को मिलने की परंपरा साथ लेकर आए थे।  इसके बाद ही पंचमेल दाल का निर्माण हुआ। पांच तरह की दालों को मिलाकर बनाए जाने वाले इस मिश्रण ने जल्द ही लोकप्रियता हासिल कर ली और शाही दरबारों की शोभा बढ़ाई। वक्त के साथ-साथ इसे बाटी के साथ खाया जाने लगा। 

चूरमा का विकास 

आपको यह सुनकर हैरानी होगी कि चूरमा दरअसल एक सुखद दुर्घटना से पैदा हुआ था। ऐसा कहां जाता है कि मेवाड़ के गुहिलोट कबीले के एक रसोई ने गलती से बची हुई बाटियों पर गन्ने का रस डाल दिया। जब यह मीठी बाटियां नरम हो गई तो समुदाय की महिलाओं को एक नया विचार आया। उन्होंने इन्हें लंबे समय तक ताजा रखने के लिए गन्ने या गुड़ से बने मीठे पानी में भिगोना शुरू कर दिया। इसके बाद समय के साथ-साथ इसका विकास होना शुरू हुआ और अब लोगों ने पिसी हुई बाटी को घी, चीनी और इलायची के साथ मिलकर एक स्वादिष्ट मिठाई बना लिया।

5379487