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Rajasthan Ajmer Sharif: राजस्थान के अजमेर शरीफ‌ दरगाह मन्नत के लिए ही फेमस। यहां लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से कोई मन्नत मागतां है वह अवश्य पूरा होता है। तो जाने इस दरगाह से जुड़ी हुई अनसुनी बातें।

Rajasthan Ajmer Sharif :-  राजस्थान के अजमेर में स्थित दरगाह पूरे भारत में अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से जाना जाता है। यह दरगाह मन्नतों के लिए लोकप्रिय माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दरगाह में अगर सच्चे मन से कोई मन्नत मांगी जाएं। तो वह जरूर पूरा हो जाता है। इस दरगाह में ख्वाजा साहब को सभी धर्म के लोग अपने मत्था टेकने आते हैं। इस दरगाह को सभी धर्म के लोग मानते हैं। ऐसा माना जाता है इस दरगाह से कोई भी खाली नहीं लौटता है। यहां आने वाले हर एक लोगों की मुराद पूरी होती है। 

दरगाह क आश्चर्यजनक तथ्य

अजमेर शरीफ ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का मकबरा है। जिसे अजमेर शरीफ दरगाह या ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह के नाम से भी जाता। ख्वाजा मोइनुद्दीन एक अच्छे व्यक्ति, इस्लामिक विद्वान और एक अच्छे दार्शनिक माने जाते थे। उनकी ख्याति इस्लाम धर्म में देश से लेकर विदेश तक फेमस हैं। इन्होंने अपना महान विचार से लोगों को शिक्षाओं के लिए जागरूक करने का भी कार्य किया। इन्हें भारत में इस्लाम धर्म के संस्थापक भी माना जाता है। उन्होंने अपने  मुस्लिम धर्म की शिक्षा गुरु उस्मान हरूनी ली और फिर उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई सारे यात्राएं की थी।  

ऐसा कहा जाता है इन्होंने हज की यात्रा पैदल ही किया था। इसके बाद ख्वाजा गरीब 1192 से 1195 तक के लिए भारत आएं थे। भारत में यह सबसे पहले दिल्ली में रूके, इसके कुछ दिन बिल वे लाहौर चलें गए। इसके बाद उन्होंने अजमेर आएं, यहां की वास्तविकता उन्हें बहुत भाया । इसके बाद ख्वाजा ने यहां रहने का फैसला किया। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन के पास कई सारे चमत्कारी शक्तियां मौजूद थी, इसी वजह से लोगों का उन के पर विश्वास था।

114 साल की उम्र में निधन

ख्वाजा साहब ने कभी भी मुस्लिम- हिन्दु के बीच में मत भेद नहीं किया। उन्होंने हमेशा सभी को मिलजुल कर रहने का संदेश दिया करते थे। उन्होंने हमेशा से लोगों को कठिन परिस्थितियों में भी खुश रहना का, सभी धर्मों का आदर करना, गरीबों का मदद करने के लिए प्रेरित करना ऐसे ही कई सारे उपदेश दिया करते थे। उनका उपदेश लोगों को जागरूक करता था। इसके बाद 114 साल के उम्र में ख्वाजा ने अपना शरीर त्याग अजमेर में त्याग दिया। जहां उन्होंने ने अपना शरीर त्याग उसी जगह को कभी अजमेर शरीफ के दरगाह के रूप आज देश विदेश में भी जाना जाता है। 

इस दरगाह को सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने 1465 में निर्माण करवाया था। वहीं इसके बाद कहा जाता है की मुगल सम्राट हुंमायूं, अकबर और शाहजहां ने इस दरगाह का अच्छे तरीके से निर्माण करवाया। 

दरगाह के नियम

इस दरगाह पर कोई भी व्यक्ति सिर खोलकर नहीं जा सकता है और जब मजार के दर्शन के लिए जाते हैं, तो किसी भी तरह के बैग या सामान ले के नहीं जा सकते हैं। ख्वाजा मोइनुद्दीन के दर पर जाने से पहले हाथ-पैर अच्छे तरीके से साफ किया जाता है। इस मकबरे में जन्नती दरवाजा भी है। जिसे साल में चार बार खोला जाता है तब यहां हजारों भक्तों की भीड़ होती हैं।

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