Water Crisis In Desert : रेगिस्तान में पानी की समस्या कोई नई चीज नहीं है। यहां पानी के हर एक बूंद की कीमत सोने चांदी से ज्यादा मानी जाती है। रेगिस्तान में वर्षा बहुत ही कम होती है यानी की औसत से भी कम। पानी की कमी के कारण यहां रहने वाले लोगों का जीवन अक्सर संघर्षों से भरा हुआ होता है। वर्षा कम होने के कारण पानी की उपलब्धता भी अधिक नहीं होती है। बात करें राजस्थान की तो क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है और सबसे ज्यादा शुष्क क्षेत्र भी है। रेगिस्तान होने के कारण यहां पानी की समस्या निरंतर बनी रहती है लेकिन यहां के लोगों का जल का संरक्षण करने का भी तरीका बेहद अलग है । आईए जानते हैं उनके जल संरक्षण करने के तरीके को।
जैसलमेर और बाड़मेर का अनोखा जल संरक्षण
जैसलमेर और बाड़मेर अपने अनोखे जल संरक्षण के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं। पालीवाल ब्राह्मणों ने जैसलमेर रियासत काल में 84 गांवों को बसाए थे। इन गांव में पालीवाल ब्राह्मण अपने विशेष जल संरक्षण के तकनीक के लिए प्रसिद्ध थे। जल को संरक्षित करने का काम यहां के जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा।जोहड़ों,छोटी बेरियों तालाबों बनाने से लेकर बड़े खड़ीनों तक, रेगिस्तान के वासी हर तरीके से जल का संरक्षण करते हुए आए हैं।
पालीवाल ब्राह्मणों की खड़ीन प्रणाली
पालीवाल ब्राह्मणों ने अपने जल संरक्षण के तरीके से जैसलमेर में 84 गांव को बसाए थे। पालीवाल ब्राह्मणों ने विशाल खड़ीनों का निर्माण किया। खड़ीन का निर्माण हमेशा ढलान वाले क्षेत्रों में किया जाता है। जहां पानी अपने आप बहकर खड़ीन में आता है। इससे गांव के लोग सिंचाई का काम करते थे। इसकी मदद से गेहूं और चने के पैदावार में भी इजाफा होती थी। कहीं ना कहीं इन गांवों के समृद्ध होने के पीछे जल संरक्षण की तकनीक थी। जिस कारण शुष्क वातावरण में भी खेती की जाती थी।
मरुभूमि के लोगों के लिए बूंद बूंद की कीमत
मरुभूमि के लोग जल को सबसे अधिक मूल्यवान समझते थे । यहां के लोगों के लिए पानी की इतनी कीमत थी कि बारिश का पानी कहीं भी थोड़ी देर के लिए ठहरता तो वह उसे इकट्ठा करने का काम करते। सदियों से चली आ रही जल संरक्षण की तकनीक को आज भी लोग निभा रहे है।