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राजसमंद जिले के नाथद्वारा में वल्लभ संप्रदाय के श्रीनाथजी मंदिर में अन्नलूट की परंपरा करीब 350 वर्षों से चली आ रही है। इस अनोखी परंपरा में आदिवासी समाज के लोग ही शामिल होते हैं।

राजस्थान में हिन्दू त्योहार का काफी महत्व है। 2 नवंबर को गोवर्धन पूजा यानि अन्नकूट कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा मनाया जाएगा। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां अन्नपूर्णा को समर्पित है और वह अपने भक्तों को कभी भूखा नहीं रखती हैं। मां अन्नपूर्णा की विधिवत पूजन करने से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। अन्नकूट मनाने की परंपरा राजस्थान के नाथद्वार में बेहद ही खास है। यहां के लोग काफी अलग तरीके से इस पर्व को मनाते हैं और दीपक जलाते हैं।

350 वर्षों से चली आ रही है यह अद्भुत प्रथा 

इस अन्नकूट लूट की प्रथा राजसमंद जिले के नाथद्वारा में वल्लभ संप्रदाय के श्रीनाथजी मंदिर में है। इस अनोखी परंपरा को लोग 350 वर्षों से मनाते आ रहे हैं, जहां भील आदिवासी समाज के लोग प्रसाद लूटने के लिए इकठ्ठा होते हैं। दिवाली के अगले ही दिन अन्नकूट भोग लगाने की परंपरा होता है। कई तरह के अलग अलग व्यंजनों से इस अनोखे प्रसाद को तैयार किया जाता है और भगवान श्रीनाथजी को यह भोग लगाया जाता है।

सालभर सहेज कर तिजोरी में रखते हैं प्रसाद 

3 सदी से ऊपर से चली आ रही इस अद्भुत प्रथा के तहत आसपास के लोग भारी संख्या में इस मंदिर में उपस्थित होते हैं। वे प्रसाद और चावल को अपनी झोली में भरकर घर ले जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां केवल आदिवासी लोग ही आते हैं और प्रसाद को घर ले जाकर अपनी तिजोरी में रख देते हैं। ऐसा करने से कभी भी घर में अन्न की कमी नहीं होती है। इसकी खास बात यह भी है कि यह मंदिर आदिवासी समाज के लोगों के लिए ही खोला जाता है।

अन्य राज्यों से भी पूजा में शामिल होते हैं भक्त 

श्रीनाथजी मंदिर में पूजा के दौरान करीब 20 क्विंटल चावल का प्रसाद बनाया जाता है। पके हुए चावल का ढेर बनाया जाता है। इस चावल को भक्त लोग अपनी झोली में भरकर घर ले जाते हैं और सालभर संभाल कर रखते हैं। केवल राजस्थान के ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के लोग भी इस पूजा में शामिल होने के लिए भारी संख्या में आते हैं। इस पूजा के समय में यह जगह भक्तों से भरा हुआ रहता है।

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