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Chamunda mata mandir: राजस्थान के मेहरानगढ़ दुर्ग में मां काली का एक काफी पुराना मंदिर है। लोगों का कहना है कि मंदिर के ऊपर उड़ रही चीलें इस दुर्ग की रक्षा करती हैं। मारवाड़ी राठौड़ इन्हें अपनी कुलदेवी मानते हैं।

Chamunda mata mandir: राजस्थान के जोधपुर में बसे मेहरानगढ़ दुर्ग में मां काली का एक प्राचीन और विशाल मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि जब जोधपुर की स्थापना हुई थी। उसके साथ ही मेहरानगढ़ दुर्ग की पहाड़ियों पर चामुंडा माता के मंदिर की भी स्थापना हुई थी। आज से लगभग 560 साल पहले मां चामुंडा देवी को मंडोर के परिहारों की कुलदेवी के रूप में पूजा गया था। तब से यहां के लोगों में चामुंडा मां के प्रति काफी आस्था है। इस मंदिर में देश-विदेश से लोग दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर से लोगों की धार्मिक आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है। इस मंदिर के श्रद्धालुओं का ये कहना है कि मां के दरबार में सच्चे मन से जो मांगोगे, वो मिलेगा।

जब तक यहां चीलें हैं, तब तक सुरक्षित हैं

इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि मारवाड़ के महाराजा अजीत सिंह ने इस मंदिर को विधिवत रूप से बनवाया था। मारवाड़ के राठौड़ चील को मां दुर्गा का रूप मानते हैं। माता ने यहीं पर महाराजा राव जोधा को ये आशीर्वाद दिया था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चील उड़ती रहेंगी, तब तक इस दुर्ग पर की आपत्ति नहीं आएगी।

बम फटने के बावजूद नहीं आई खरोंच

महाराज रावजोधा ने 561 साल पहले मेहरानगढ़ दुर्ग में माता की मूर्ति मंडोर से लाकर स्थापित की थी। इसके बाद राव जोधा ने भी परिहारों की कुलदेवी माता चामुंडा को अपनी कुलदेवी मान लिया था। तब से मारवाड़ के राठौड़ चामुंडा मां को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। जोधपुर के लोग चामुंडा मां को अपना रक्षा मानते हैं।

इनका कहना है कि मां चामुंडा ही चील के रूप में हमारी रक्षा करती हैं। जब तक दुर्ग पर चील उड़ रही हैं, तब तक माता चामुंडा हमारी रक्षा करेंगी। कहा जाता है कि 9 अगस्त 1857 को किले में गोपाल पोल के पास बारूद के ऊपर बिजली गिरी थी। इस दौरान मंदिर तो टूट गया था, लेकिन मंदिर की मूर्ति को खरोंच तक नहीं आई थी।

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