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Chittorgarh Rang Teras Holi: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ शहर में होली के 13 दिन बाद रंग तेरस पर होली खेलने की परंपरा निभाई जाती है। मुगल शासक अकबर के आक्रमण के बाद राजपूत ने युद्ध भूमि में शौर्य का प्रदर्शन करते हुए रक्त की होली खेली थी। इसीकि की याद में चित्तौड़गढ़ वासी रंग तेरस पर होली मनाते हैं।

Chittorgarh Rang Teras Holi: राजस्थान यानी राजाओं का शहर ऐसा शहर जो अपनी ऐतिहासिकता के साथ-साथ कई वीर स्मृतियों को भी समेटे हुए है। चित्तौड़गढ़ शहर राजस्थान के उन ऐतिहासिक शहर में से एक है जो अपनी वीरता और बलिदान की कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। उन्हीं स्मृतियों में से एक है राजपूतों की वह वीरगाथा जो मुगल शासक अकबर के पराक्रमी सेना से टकराई थी।

क्यों रंग तेरस पर खेली जाती है होली?

राजपूतों के वीरगति से जुड़ी यह ऐतिहासिक युद्ध की कहानी है, जिसकी याद में हर साल होली के ठीक 13 दिन बाद रंग तेरस पर चित्तौड़गढ़वासी होली मनाते हैं। होली के त्यौहार के ठीक 13 दिन बाद होली मनाने के पीछे का इतिहास यह है कि 1568 को मुगल शासक अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ पर भयंकर आक्रमण किया था। इस आक्रमण के जवाब में राजपूतों ने युद्ध भूमि में शौर्य का प्रदर्शन करते हुए रक्त की होली खेली थी। इन्हीं वीर बलिदानों की याद में चित्तौड़गढ़वासी रंग तेरस पर होली मनाते हैं। 

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क्यों महारानी और हजारों महिलाओं को करना पड़ा था जौहर?

बताया यह भी जाता है कि अकबर ने किले में प्रवेश के लिए अकबर ने दक्षिण क्षेत्र में एक टीला बनवाने की योजना बनवाई थी। जो कि बाद में “मोहर मंगरी” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब किले की सुरक्षा संभव नहीं हो पा रही थी, तब महारानी और हजारों महिलाओं ने अपना जौहर कर आत्म बलिदान दे दिया था। जिसके बाद अगली सुबह राजपूत योद्धाओं केसरिया बाना पहने अंतिम युद्ध के लिए किले का दरवाजा खोल दिए थे।

 युद्ध में हजारों निर्दोष लोग मारे गए थे

राजपूतों की वीरता की और उनके बलिदान की इतिहास में खास जगह है। इस युद्ध में भी जयमल राठौड़ और कल्लाजी राठौड़ ने अपना अतुल्यनीय पराक्रम दिखाया था। इन्होंने अपने आखरी सांस तक यह युद्ध लड़ा था और वीरगति को प्राप्त हुए थे। युद्ध के दौरान तकरीबन हजारों की संख्या में सैनिकों और निर्दोष नागरिकों की भी जान चली गई थी। यह हृदय विदारक दृश्य चित्तौड़ की मिट्टी को लहुलुहान कर दिया था। जिस वजह से इसे खून की होली भी कहा जाता है।

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