Gangaur 2025: होली का पर्व बड़े धूमधाम से देश भर में मनाया गया है। इसी के दूसरे दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि से 16 दिवसीय गणगौर पूजा की शुरुआत हो गई। यह मुख्यतः राजस्थान में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः कुंवारी लड़कियों व महिलाओं का त्योहार है, इसमें सुहागनी अपने पति की लंबी आयु, कुशल वैवाहिक जीवन के लिए और कुंवारी कन्याएं मनोवांछित वर पाने के लिए व्रत रखती हैं।
पीहर जाकर पूजा करती हैं शादीशुदा महिलाएं
राजस्थान की महिलाएं और कन्याएं कहीं भी रहें उनके लिए गणगौर पर्व विशेष महत्व रखता है। होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रातः काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं। जिस लड़की की शादी हो जाती है वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है। इसी कारण इसे सुहाग पर्व भी कहा जाता है।
राजस्थान में होता है गणगौर का विशेष महत्व
गणगौर पर्व का राजस्थान में ख़ास महत्व है। जोधपुर में गणगौर उत्सव दो दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है। यहां आधी दिन की सरकारी छुट्टी भी होती है। ईसर और गणगौर की प्रतिमाओं की शोभायात्रा जालोरी गेट से निकलती है, जिनको देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सेनानी उमड़ते हैं। इसके साथ घर-घर, कॉलोनियों और होटलों में भी इस पर्व का आयोजन किया जाता है।
क्या है गणगौर का धार्मिक महत्व?
बात करें गणगौर के धार्मिक महत्व की तो कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था। उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है। वहीं, एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक़ कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव की तपस्या कर प्रसन्न किया था और फिर तीसरे आँख से भस्म हुए अपने पति को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की थी। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर कामदेव को पुनर्जीवित करके विष्णु लोक जाने का वरदान दिया। इसके बाद प्रतिवर्ष गणगौर का उत्सव मनाया जाता है।