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Jalore Kaniwada Hanumanji Temple: राजस्थान के जिला जालौर से 12 किलोमीटर दूर कानिवाड़ा गांव में स्थित है। यहां बालाजी की मूर्ति मानव निर्मित नहीं बल्कि स्वयं प्रकट हुई है। कहा जाता है कि बालाजी की मूर्ति पाताल लोक से प्रकट हुई थी।

Jalore Kaniwada Hanumanji Temple: राजस्थान के जालौर में स्थित एक प्राचीन हनुमान मंदिर जो सामाजिक समरसता का प्रतीक मानी जाती है। मंदिर करीब 800 वर्ष पुरानी मानी जाती है। मंदिर को श्रद्धालु आज भी उतनी ही आस्था से पूजते हैं जितना कि प्रारंभिक काल में श्रद्धालुओं को इस मंदिर के प्रति आस्था थी। इस मंदिर को सामाजिक एकता का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में सभी समुदाय वर्ग के लोग बिना किसी भेदभाव के आते हैं। जो भी भक्त मंदिर में सच्चे मन से मनोकामना मानता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यह मंदिर राजस्थान के जिला जालौर से 12 किलोमीटर दूर कानिवाड़ा गांव में स्थित है। यहां बालाजी की मूर्ति मानव निर्मित नहीं बल्कि स्वयं प्रकट हुई है। कहा जाता है कि बालाजी की मूर्ति पाताल लोक से प्रकट हुई थी जिस कारण इन्हें पातालेश्वर हनुमान जी के नाम से ही जाना जाता है।

अद्भुत चमत्कार बालाजी के मूर्ति पर नहीं टिकती छत

बालाजी की मंदिर का तीन बार निर्माण करवाया गया है। लेकिन जैसे ही बालाजी के प्रतिमा के ऊपर छत डालने का प्रयास होता है वह टूट कर गिर जाता है। भक्ति इसे चमत्कार के रूप में देखते हैं। इसके बाद से आज तक बालाजी का प्रतिमा के ऊपर कोई छत नहीं डाली गई और खुले आसमान के नीचे मूर्ति को विराजमान रहने दिया गया। मंदिर परिसर में छठ है लेकिन बालाजी के मूर्ति के ऊपर कोई छत नहीं है। 

गर्ग परिवार संभाल रहा बालाजी का धाम 

मंदिर को सामाजिक समरसता और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के पुजारी गर्ग परिवार से है जो कि एक दलित समाज से आते हैं । गर्ग परिवार की कई पीढ़ियां बालाजी की सेवा में लगी हुई है। मंगलवार और शनिवार को फेरी लगाने से यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। गधा’ और ‘गदा’ बांधने से दूर होते दर्द और कष्ट 

मंदिर में ‘गधा’ और ‘गदा’ बांधने की परंपरा है। बालाजी को मानने वाले भक्ति से सिर पर बांधकर कष्ट निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं। भक्तों का मानना है कि हां दर्शन से ही उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। अजमेर,जोधपुर और पाली से बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां तक की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मंदिर को सामाजिक एकता का प्रतीक बताया है। 

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