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कैला देवी मंदिर करौली: मां कैला देवी का मंदिर करौली जिले में है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि मां ने अपने भक्त को दर्शन नहीं दे पाए थे, इसलिए यहां की मूर्ति का मुंह थोड़ा टेढ़ा है।

 Kaila Devi Temple Karauli: राजस्थान के करौली जिले में कैला देवी गांव में कैला देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। कैला देवी को मौलिक ऊर्जा का अवतार माना जाता है। इस मंदिर के मुख्य स्थान पर मां कैला देवी और चामुंडा देवी की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में बड़ी मूर्ति कैलादेवी की है, जो थोड़ी झुकी हुई है और छोटी मूर्ति चामुंडा देवी की है। कैला देवी का मंदिर इतिहास के कारण भी लोगों में काफी प्रचलित है। 

स्कंद पुराण में है जिक्र

स्कंद पुराण में कैला देवी के बारे में लिखा हुआ है। पुराण के अनुसार मान्यता है कि महायोगिनी महामाया ने ये घोषणा की थी कि कलयुग में उनका नाम ‘कैला’होगा और कैलेश्वरी के रूप में भक्त उनकी पूजा करेंगे। कैला देवी को महायोगिनी महामाया का रूप माना जाता है। महायोगिनी महामाया वही हैं, जिन्होंने यशोदा की कोख से जन्म लिया और बाद में उन्हें कृष्ण की जगह और कृष्ण को महामाया की जगह रख दिया गया।

महायोगिनी महामाया को श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव, यशोदा के घर से लेकर गए थे और कंस ने उन्हें मारने की कोशिश की थी। उस समय उन्होंने दिव्य रूप में दर्शन देते हुए बताया था कि तुम्हारा वध करने के लिए जिसका अवतार हुआ है, वो मैं नहीं हूं। कंस जिसे मारना चाहता है, वो पहले ही कहीं जन्म ले चुका है। कुछ जगह ये भी कहा जाता है कि कैलादेवी पूर्व जन्म में हनुमान जी की माता अंजनी थीं। इसलिए काफी लोग उन्हें अंजनी माता भी कहते हैं। 

क्यों झुकी है माता की मूर्ति

माता की मूर्ति झुकी होने के पीछे एक कथा काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार माता का एक भक्त दर्शन के लिए आया था और उसे माता के दर्शन नहीं हो पाए थे। माता अपने मूलस्वरूप से हटकर उस दिशा में देखने लगीं, जिधर वो भक्त गया था। तब से मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति का मुख थोड़ा टेढ़ा हो गया है। 

किसने की थी स्थापना

इस मंदिर की स्थापना महाराज गोपाल सिंह ने की थी और वे माता की मूर्ति को गंगरौन किले से लाए थे। मंदिर को संगमरमर के पत्थर से बनाया गया है। इस मंदिर में शिव शंकर, गणेश भगवान, भैरव बाबा और हनुमान जी का मंदिर भी बना हुआ है। यहां हनुमान जी को लांगुरिया रूप में पूजा जाता है। हनुमान मंदिर को बनाने के लिए लाल पत्थर का निर्माण किया गया है। 

प्रतिवर्ष लगता है मेला

कैलादेवी मंदिर में हर साल चैत्र के महीने की शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला लगता है। इस दौरान गुर्जर जाति के लोग घुटकन और लांगुरिया नृत्य भी करते हैं। कैलादेवी मां को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस मेले में महिलाएं सिंदूर और हरी चूड़ियां जरूर खरीदती हैं।

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