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Mahashivratri 2025: राजस्थान के धौलपुर जिले के सैंपऊ खण्ड स्थित सैंपऊ महादेव मंदिर में सबसे लंबा शिवलिंग स्थित है। माना जाता है कि इसे भगवान राम ने स्थापित किया था, इसलिए इस मंदिर को राम रामेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

Mahashivratri 2025: राजस्थान में भगवान शिव के कई ऐसे प्राचीन मंदिर स्थित है जो सालों से लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए है। इन्हीं मंदिरों में से एक है धौलपुर जिले के सैंपऊ खण्ड स्थित महादेव मंदिर जहां सबसे लंबा शिवलिंग स्थित है। कहा जाता है इसे भगवान श्री राम ने अपने हाथों से इसकी स्थापना की थी, जिसकी वजह से इसे राम रामेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। 

350 साल पहले हुआ था मंदिर का निर्माण 
मंदिर की खास बात यह है कि यह जितना नीचे धंसा हुआ है उतना ही ऊपर बना हुआ है। लगभग 350 पहले इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। मंदिर में स्थापित शिवलिंग करीब 750 साल पुरानी है। माना जाता है तब से लेकर आज तक यह महादेव मंदिर इसी अवस्था में है। 

मंदिर से जुड़ी कहानी
पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर से एक अनोखी कहानी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार संवत 1305 में तीर्थाटन करते हुए श्यामरतन पुरी ने एक पेड़ के नीचे अपना धुना लगा लिया था, जिसके कुछ दिन बाद उन्हें अहसास हुआ कि इस जमीन के नीचे शिवलिंग दबा हुआ है। जिसके बाद उन्हेंने जैसे ही झाड़ियों को हटाया और खुदाई की तो वहीं शिवलिंग दिखाई दी। 

खुदाई के दौरान चूंकि शिवलिंग खंडित हो गई थी और इसे निषेध मानकर श्यामरतन पुरी जैसे ही मिट्टी से उसे दबाने की कोशिश करने लगे उतना ही यह शिवलिंग बाहर निकलती गई। लगभग आठ फीट तक मिट्टी डालने के बाद शिवलिंग दिखता रहा और उन्होंने गोलाकार चबूतरा नुमा तैयार कर शिवलिंग की पूजा करना शुरू कर दिया। 

यहां के अनोखे पेड़ का रहस्य 
यहां एक ऐसा अनोखा पेड़ स्थित है जिसकी एक डाली पर तो फूल लगते है और दूसरी डाली पर कांटे। इसी कारण से इन दोनों डालियों को नर और मादा के रूप में जाना जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्या में भक्त महादेव की पूजा अर्चना करने के लिए यहां आते है। 

भगवान राम ने हाथों से की थी शिवलिंग की स्थापना
सैंपऊ महादेव मंदिर मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार भगवान राम मुनि विश्वामित्र के साथ भ्रमण कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। कालांतर में यह भूमि में नीचे दब गया और ऊपर झाड़ उग गई। इसी कारण से इस मंदिर को राम रामेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

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