Mewar Ka Haridwar: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी तहसील के हरनाथपुरा पंचायत में स्थित मातृकुंडिया को मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है। मान्यता है कि यह वहीं स्थान है जहां भगवान परशुराम को अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
इसी जगह पर भगवान परशुराम ने शिव जी की तपस्या की थी और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान में उन्हें मातृकुंडिया के जल से स्नान करने को कहा था। स्नान के बाद उनके पाप धुल गए थे यानि भगवान परशुराम को उनके पाप से मुक्ति मिल गई थी। इसी कराण से इस जगह को मातृकुंडिया के नाम से जाने लगा।
इस कारण से कहते हैं मेवाड़ का हरिद्वार
मातृकुंडिया का मतलब है माता के पाप से मुक्ति देने वाला कुंड। बता दें कि मातृकुंडिया बनास नदी पर स्थित है। माना जाता है कि इस प्राचीन कुंड में स्नान करने से जाने अनजाने में हुए पाप से मुक्ति मिलती है। साथ ही मेवाड़ के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन भी यहीं करते है।
जो लोग अपने पूर्वजों की अस्थि को हरिद्वार नहीं ले जा पाते है वे इसी कुंड में अस्थि का विसर्जन करते हैं। इसी कारण से मातृकुंडिया को मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने करावाया था।
मंगलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर
मातृकुंडिया स्थान पर कई सारे मंदिर मौजूद है इनमें से सबसे प्रमुख है भगवान शिव का मंगलेश्वर महादेव का मंदिर। मंदिर के पुजारी के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह जी ने कराया था। भगवान शिव के अलावा यहां हनुमान जी और जीवित समाधि लेने वाले बाबा का समाधि स्थल भी बना हुआ है। बता दें कि यहां लगभग छोटे-बड़े 25 मंदिर स्थित है। साथ ही 30 धर्मशाला बनी हुई है।
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