Nagnechi Temple Badmer: राजस्थान के बाड़मेर जिले में माता नागणेची मंदिर है। नागणेची माता को सूर्यवंशी राठौड़ की कुलदेवी माना जाता है। मंदिर में विराजमान मूर्ति में सिंह पर सवार मां नागणेच्या के मस्तक पर नाग फन फैलाए हैं। माता के हाथों में त्रिशूल और खप्पर है। नागणेची माता को नागणेच्या, राठेश्वरी, मंशा देवी और पंखिणी माता भी कहा जाता है। नागणेची माता महिषमर्दिनी का स्वरूप हैं। उनका प्रतीक चिन्ह बाज या चील है। माता का मुख्य मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले के कल्याणपुर के पास नगाणा गांव में है।
मामा ने गुस्से में कही कुलदेवी की बात
मंदिर का इतिहास काफी प्रचलित है। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि बचपन में राव दूहड़ अपने ननिहाल गए। उनके मामा का पेट काफी बड़ा था। अपने मामा के बड़े पेट को देखकर दूहड़ अपनी हंसी नहीं रोक पाए और जोर जोर से हंसने लगे। इस बात पर उनके मामा को गुस्सा आ गया और उन्होंने गुस्से में बोला कि तुम मेरे बड़े पेट को देखकर हंस रहे हो और पूरी दुनिया तुम्हारी कुल देवी न होने पर तुम लोगों पर हंसती है। तुम्हारे बाबा तो कुलदेवी की मूर्ति तक साथ नहीं ला सके, तभी तो तुम्हारा कहीं ठौर ठिकाना नहीं बन पा रहा है।
मामा की बात सुन किया निश्चय
मामा की ये बात सुनकर राव दूहड़ ने मन ही मन निश्चय किया कि वो अपनी कुल देवी की मूर्ति लेकर आयेगा, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी कुल देवी कौन हैं? माता की मूर्ति कहां है और यहां तक कैसे लाई जायेगी? कुछ दिन बाद वे अपने पिता के पास खेड़ लौट आये। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया कि वो तपस्या कर माता को प्रसन्न करेगा और फिर मूर्ति लायेगा। बालपन में दूहड़ बिना किसी को बताये घर से निकल गए और जंगल पहुँचकर अन्न-जल त्यागकर माता की तपस्या करने लगे। बालहठ देखकर माता का दिल पसीज गया और उन्होंने दूहड़ को दर्शन दिये।
माता ने दूहड़ को दी चेतावनी
बालक दूहड़ ने माता को आपबीती सुनाई। तब माता ने बताया कि तुम्हारी कुलदेवी का नाम चक्रेश्वरी है और उनकी मूर्ति कन्नौज में है। तुम अभी बहुत छोटे हो, वहां नहीं पहुंच पाओगे और बड़े होकर अपनी कुलदेवी की मूर्ति ले आना। कुछ समय बाद दूहड़ के पिता राव आस्थाजी का देहांत हो गया और राव दूहड़ खेड़ के शासक बन गए। एक दिन राव दूहड़ राजपुरोहित पीथड़जी को लेकर कन्नौज रवाना हुए, जहां उन्हें गुरु लंबा ऋषि मिले। उन्होंने दूहड़ को माता चक्रेश्वरी के दर्शन कराते हुए बताया कि यही तुम्हारी कुल देवी हैं। राव दूहड़ पूरे विधि-विधान से माता की मूर्ति साथ लाने की तैयारी कर रहे थे। तभी अचानक उन्हें कुलदेवी की आवाज आई की ठहरो पुत्र मैं इस तरह तुम्हारे साथ नहीं जा सकती।
मैं पंखिणी के रूप में तुम्हारे साथ चलूंगी। इस पर दूहड़ बोले कि मां हमें कैसे ज्ञात होगा कि आप हमारे साथ चल रही हैं। तब माता ने जवाब दिया कि मैं पंखिणी के रूप में तुम्हारे साथ चलती नजर आऊंगी, लेकिन याद रहे कि तुम्हें कहीं रुकना नहीं है। दूहड़ कन्नौज से निकले और नगाणा यानी आत्मरक्षा पर्वत तक आते-आते थक गए। वो नीम के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुके लेकिन ज्यादा थकावट होने के कारण उन्हें नींद आ गयी। जब उनकी आंख खुलीं तो देखा कि पंखिणी माता नीम के पेड़ के ऊपर बैठी हैं। इस पर दूहड़ जी घबराकर उठे और आगे चलने लगे, तब माता ने जवाब दिया कि पुत्र मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि कहीं मत रुकना। जहां तुम रुकोगे, वहीं मैं रुक जाऊंगी और आगे नहीं बढूंगी। अब मैं आगे नहीं चलूंगी।
दूहड़ के लिए आदेश
तब दूहड़ ने माता से पूछा कि मां अब मेरे लिए क्या आदेश है? कुलदेवी ने जवाब दिया कि कल सुबह ढाई प्रहर होने से पहले-पहले तुम जितना संभव हो सके, अपना घोड़ा उतनी दूर तक घुमाना। यही क्षेत्र अब मेरा ओरण होगा और यहीं मैं मूर्ति रूप में प्रकट होऊंगी। मगर ध्यान रहे कि जब मैं प्रकट होऊंगी तो तुम ग्वाले से कह देना कि वो गायों को हांक न लगाए। अगर ऐसा हुआ तो मूर्ति निकलते- निकलते रह जायेगी। अगले दिन सुबह उठकर दूहड़ ने वैसा ही किया। घोड़े को काफी दूर तक दौड़ाया और ग्वाले को गायों को आवाज लगाने से मना किया और कहा कि वो आज गायों को आवाज न लगाए, उसकी गायें कहीं भी जायेगी तो दूहड़ उन्हें ढूंढ कर लायेंगे।
प्रकट हुई मां की आधी मूर्ति
कुछ देर बाद पहाड़ों पर तेज गर्जना के साथ बिजली चमकने लगी। माता की मूर्ति भी स्वतः भूमि के अंदर से प्रकट होने लगी। ग्वाला काफी डर गया और अपनी आदत से मजबूर उसके मुंह से गायों को हांकने की आवाज निकली। इसके बाद माता की मूर्ति प्रकट होते-होते अधेड़ में ही रुक गयी। इसको होनी मानकर दूहड़ ने मां की आधी मूर्ति देखकर उन्हें नमस्कार किया। इसके बाद दूहड़ ने 1305 माघ वदी दशम संवत सन् 1362 में मंदिर का निर्माण कराया। चक्रेश्वरी माता नगाणा गांव में मूर्ति रूप में प्रकट हुई और यहीं से इनका नाम नागणाच्या माता पड़ गया। इस तरह नागणेची माता राठौड़ों की कुलदेवी कहलाईं। अठारह भुजाओं वाली माता नागणेची के मंदिर में हर साल माघ शुक्ल सप्तमी और भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला लगता है। यहां सात धागों को कुमकुम लगाकर माता को राखी बांधी जाती है।