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Churu: राजस्थान के चुरू में एक ऐसा गांव है, जहां पर न ही कोई मंदिर है और न ही मस्जिद। यहां के लोग मरने वालों की अस्थियां भी विसर्जित नहीं करते, जानिए ऐसा क्यों किया जाता है।

Churu: जब आप किसी भी गांव में गए होंगे तो आपने वहां पर मंदिर या मस्जिद तो जरूर देखे होंगे। हर गांव में पुराने या नए मंदिर या मस्जिद तो होते ही हैं। अगर हम आपसे कहें कि देश में एक ऐसा गांव है, जहां पर एक भी मंदिर या मस्जिद नहीं है। तो शायद आपको भी ये बात थोड़ी सी अजीब लगे, लेकिन ये सच है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के चुरू जिले के ढाणी गांव की। ये इकलौता ऐसा गांव है जहां पर एक भी मंदिर या मस्जिद नहीं हैं। 

नहीं किया जाता अस्थि विसर्जन

ढाणी गांव में न ही कोई मंदिर है और न ही मस्जिद। इतना ही नहीं यहां पर किसी के मरने के बाद अस्थियों को नदी में विसर्जित करने की भी परंपरा नहीं है। 68 साल पहले इस गाँव में ये फैसला लिया गया था कि किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद अस्थियों का विसर्जन नहीं किया जाएगा। इस फैसले को लेकर एक कहानी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि संवत् 2008 में आवागमन के लिए ज्यादा सवारियां नहीं हुआ करती थीं। उस समय जब गांव में पांच-सात लोगों की अस्थियाँ इकट्ठा हो जाती थीं, तब गाँव का एक आदमी जाकर उन अस्थियों का विसर्जन कर देता था। 

क्यों लिया गया ऐसा फैसला

एक बार गांव के चौधरी रहे चंद्राराम लांबा की माता का देहांत हुआ और तब अस्थियां विसर्जन की बात चल रही थी। उस समय चंद्रा ने कहा कि हम जिन लोगों को अस्थि विसर्जन करने भेजते हैं, क्या वो सच में अस्थि विसर्जन करता है? इस बात को लेकर सब सोच में पड़ गए। इसके बाद सामूहिक रूप से ये तय हुआ कि अब गांव में किसी की भी अस्थियां विसर्जित नहीं की जाएंगी। तब से लोग इंसान का दाह संस्कार करने के बाद उनकी अस्थियों को भी जलाकर राख कर देते हैं। 

मंदिर न होने का क्या है कारण

वहीं गांव में मंदिर न होने का एक अनूठा कारण है। कहा जाता है कि चिड़वा के पास लाम्बा गोठड़ा गांव से कुछ लोग इस गांव मे आकर रहने लगे थे। तब यहां पर न ही कोई मंदिर था और न ही कोई ब्राह्मण। शादी या किसी और तरह के संस्कार के लिए पुराने गांव से ही पुजारी को बुलाया जाता था। हमेशा से ऐसा ही चलता रहा और अब तक ऐसा ही चल रहा है। कभी कोई मंदिर या मस्जिद नहीं बनाया गया। गांव के लोगों की माने तो इस गांव मे मेघवाल, जाट और नायक परिवार रहता है इसलिए मस्जिद बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ी।

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