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Tetaji Snake Story: राजस्थान का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। राजस्थान में एक से बढ़कर एक महापुरुषों ने जन्म लिया है। आज हम आपको एक ऐसे ही महापुरुष की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसका नाम तेताजी है।

Tetaji Snake Story: आज हम राजस्थान के एक ऐसे महापुरुष के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका जन्म राजस्थान के नागौर जिले के खरनालिया गांव में हुआ था। उनका नाम तेजाजी था। नागवंशी क्षत्रिय जाट घराने के एक किसान परिवार के घर तेजाजी का जन्म हुआ था। तेजाजी राजस्थान की लोक कथाओं में एक प्रसिद्ध नायक है। राजस्थान में उन्हें एक लोक देवता का स्थान दिया गया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा  राज्यों में तेजाजी की पूजा की जाती है। 

सिर्फ 9 महीने की आयु में कर दिया विवाह

तेजाजी महाराज वीरता साहस और न्याय के प्रतीक माने गए हैं। तेजाजी एक ऐसे महान महापुरुष थे, जिन्होंने गायों की रक्षा के लिए एक सांप को दिया वचन निभाया और अपने प्राणों न्योछावर कर दिए। तेजाजी एक किसान परिवार के बेटे थे। उनके पिता का नाम ताहड़ देव और माता का नाम रामकंवरी था। दोनों भगवान शिव के उपासक थे। मान्यता के अनुसार नाग देवता के आशीर्वाद से रामकंवरी को पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जन्म के समय उनके चेहरे की आभा और तेज को देखते हुए उनका नाम तेजाजी रखा गया था। माता-पिता ने 9 माह की आयु में ही उनका विवाह 6 माह की पेमल के साथ  कर दिया था। उनका विवाह अजमेर जिले के पुष्कर में करवाया गया।

तेजाजी ने वचन की खातिर सांप से कटवाई अपनी जीभ

एक बार की बात है जब तेजाजी अपनी पत्नी को लेने के लिए ससुराल जा रहे थे, तो उन्होंने रास्ते में देखा की कुछ डाकू लाछा गुर्जरी की गायों को लेकर जा रहे हैं। जब तेजाजी  गायों की रक्षा के उनके पीछे जा रहे थे। तभी रास्ते में उन्होंने दो सांपों को आग में जलते हुए देखा। सांपों को जलता हुआ देख तेजाजी ने उनको आग से बाहर निकाला। इस बात से सांप क्रोधित हो गया और तेजाजी को डसने लगा। तभी तेजाजी ने सांप को रोक कर उससे विनती की। तेजाजी ने सांप  से कहा वह गायों को बचाने के लिए जा रहे हैं। 

तेताजी को देवता मान पूजते हैं लोग

सांप को वचन दिया की गायों को छुड़ाने के बाद जरूर लौटूंगा तब आप मुझे डस लेना। गायों को बचाते बचाते तेजाजी घायल हो गए किंतु अपना वचन निभाने के लिए वह से सांप के पास लौटे। तब उनका पूरा शरीर चोटिल और रक्त से सना हुआ था। उनको ऐसा देख सांप ने डसने से मना कर दिया। तब तेजाजी ने अपनी को जीभ बाहर निकाला। सांप से जीभ पर डसने के लिए कहा । सांप ने तेजाजी को जीभ पर डस लिया। इस तरह वचनबद्ध अपने प्राणों की न्योछावर करने वाले तेजाजी की लोग लोक देवता मानकर पूजा करने लगे।

तेजाजी को माना गया शिवजी का 11वां अवतार

तेजाजी को शिवजी का 11वां अवतार माना गया है। तेजाजी जी जिस घोड़ी पर सवार होकर चलते थे। उसका नाम लीलण था। तेजाजी अपने साथ भाला, तलवार और धनुष-बाण रखा करते थे। उनके चबूतरे को तेजाजी का थान और भवन को तेजाजी का मंदिर कहते हैं। उनके लोकगीतों को तेजा गायन कहा जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी को तेजाजी दशमी कहा जाता है। हर साल तेजा दशमी के दिन तेजाजी महाराज का मेला लगता है। राजस्थान के अलग-अलग शहरों और गांव में तेजाजी के मंदिरों में  मेला का आयोजन होता है। 

आज भी दिखती है तेजाजी के परंपराओं की झलक

अजमेर जिले के ब्यावर और सुरसुरा में भी एक बड़ा मेला लगता है। यह मेला बडे धूमधाम के साथ मनाया जाता है। प्रसाद के रूप में लोग नारियल, चूरमा का प्रसाद चढ़ाते है। इस तरह राजस्थान में कई लोक प्रसिद्ध लोक देवता हुए हैं। तेजाजी की कहानी ग्रामीण राजस्थान की संस्कृति और परंपराओं में समाहित है। जिसकी झलक आज भी राजस्थान के लोगों में देखने को मिलती है। तेजाजी का बलिदान उनकी वीरता को दर्शाता है। इस तरह तेजाजी को न्याय के देवता का प्रतीक  माना गया है। तेजाजी के बारे में कई लोक कथाएं प्रसिद्ध है। तेजाजी को सापों और गायों का देवता माना जाता है। तेजाजी को वीर तेजा और सत्यवादी के रुप में भी जाना जाता है।

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