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Rajasthan Rameshwar Dham: रामेश्वर धाम, न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। तो आइए इस धाम के बारे में विस्तार से जानते हैंं।

Rajasthan Rameshwar Dham: सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित रामेश्वर धाम, न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। चंबल, बनास और सीप नदियों के त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थित इस मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है।

मंदिर का इतिहास

रामेश्वर महादेव का मंदिर हजारों साल पुराना माना जाता है। स्थानीय जनमानस के अनुसार, भगवान राम ने इस मंदिर की स्थापना अपने हाथों से की थी। वे जब शिवलिंग की स्थापना कर रहे थे, तभी भोले नाथ स्वयं प्रकट हुए। भगवान राम द्वारा शिवलिंग की स्थापना के कारण ही इस स्थान का नाम रामेश्वर धाम पड़ा।

वार्षिक मेला

रामेश्वर धाम पर हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें मध्य प्रदेश और राजस्थान से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। लेकिन, पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के कारण यह मेला स्थगित रहा है, जिससे स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं को बड़ा खेद हुआ है।

चतुर्भुज भगवान की प्रतिमा

रामेश्वर धाम में भगवान चतुर्भुज की एक विशेष प्रतिमा है, जो प्राकृतिक रूप से स्थापित नहीं है। किवदंती है कि चरवाहों की गायें एक विशेष स्थान पर दूध देती थीं। वहीं जब वहां पर खुदाई की गई, तो भगवान चतुर्भुज की प्रतिमा निकली। इसे त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थापित किया गया। बारिश के टाइम पर नदियों में काफी पानी भर जाता था, जिसकी वजह से प्रतिमा कई बार डूब जाती थी। इसलिए, वहां के आम लोगों ने चतुर्भुज भगवान के मंदिर का निर्माण किया, जिससे ये प्रतिमा सुरक्षित रह सके।

अखण्ड ज्योति का महत्व

रामेश्वर धाम में भगवान चतुर्भुज के मंदिर में सदियों से जलती आ रही अखण्ड ज्योति श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करती है। यह ज्योति निरंतर जलती रहती है, जिसमें श्रद्धालु घी चढ़ाते हैं। दूर-दूर से लोग इस अमर ज्योति के दर्शन करने के लिए रामेश्वर धाम पहुंचते हैं।

भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग

भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग आज भी मंदिर के गर्भगृह में मौजूद है। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह भगवान राम की पूजा का प्रतीक है और उनके द्वारा स्थापित किया गया है।

परशुराम घाट

रामेश्वर धाम को भगवान परशुराम की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान परशुराम मातृहत्या के संताप से व्याकुल होकर रामेश्वर धाम आए और यहां घोर तपस्या की, जिससे उन्हें चिरशांति मिली। चंबल नदी के किनारे स्थित प्राचीन परशुराम घाट पर भगवान परशुराम के पदचिह्न भी अंकित हैं।

भक्तिमय माहौल

रामेश्वर धाम में अमर ज्योति के साथ-साथ लगभग 50 वर्षों से अखण्ड हरि कीर्तन का कार्यक्रम भी चल रहा है। खंडार तहसील क्षेत्र के विभिन्न गांवों के लोग नियमित रूप से संकीर्तन में अपनी ड्यूटी देते हैं, जिससे चौबीसों घंटे मंदिर का वातावरण भक्तिमय बना रहता है।

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