Rajasthan Sikar Salasar Balaji: राजस्थान के सीकर में स्थित सालासर बालाजी मंदिर की स्थापित होने की कहानी काफी रोचक है। इसे सुन आपको भी हैरानी होगी। राजस्थान के सीकर जिले के रूल्याणी गांव में एक पंडित लछीरामजी पाटोदिया रहते था, जिनका सबसे छोटे पुत्र मोहनदास बचपन से ही संत प्रवृत्ति का था। उसके जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक आगे चलकर तेजस्वी संत बनेगा। समय बितता गया मोहनदास की बहन कान्ही का विवाह सालासर गांव में कर दिया गया। कान्ही को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, पुत्र का नाम उदय रखा गया, किन्तु कुछ समय बाद ही कान्ही विधवा हो गई।
किसी ने गड़ासा छीनकर फेंका
मोहनदास अपनी बहन और भांजे की मदद के लिए सालासर आकर रहने लगा। वह बहन के खेतों में काम करने लगा। एक दिन की बात है जब मामा भांजे खेत में काम कर रहे थे तभी मोहनदास के हाथ से किसी ने गड़ासा छीन कर दूर फेंक दिया। मोहनदास ने गड़ासा उठा लिया और काम करने लगा। लेकिन फिर दोबारा किसी ने उनके हाथ से गड़ासा लेकर दूर फेंक दिया। ऐसा उनके साथ कई बार हुआ। यह सब उनका भांजा उदय देख रहा था। वह अपने मामा के पास गया और मामा को आराम करने की सलाह दी। लेकिन, मोहनदास ने कहा की कोई उनके हाथ से जबरदस्ती गड़ासा छीन कर फेंक रहा है।
शाम को घर जाकर उदय ने यह बात अपनी मां को बताई। कान्ही ने सोचा की भाई की शादी करवा दूँगी तो सब ठीक हो जाएगा। यह बात सुनकर मोहन ने अपनी बहन से कहा कि जिस लड़की से मेरी शादी की बात होगी। वह लड़की मर जाएगी। इसलिए किसी लड़की से मेरी शादी की चर्चा मत करो। किंतु, वह नहीं मानी। वह शादी के लिए लड़की खोजने लगी। जिस लड़की से मोहन की शादी की बात चलती वह मृत्यु को प्राप्त हो जाती। इसके बाद कान्ही को बात समझ में आ गई और उसने शादी की जिद छोड़ दी। मोहन ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और अपना ज्यादातर समय भजन कीर्तन में व्यतीत करने लगा।
मोहनदास को बालाजी के कैसे हुए दर्शन
एक दिन जब यह तीनों खाना खा रहे थे। तभी दरवाजे पर जाकर किसी भिक्षुक ने भिक्षा मांगी। कान्ही को जाने में कुछ देर हो गई। जब वह दरवाजे पर पहुंची तो उसे एक परछाई मात्रा दिखाई पड़ी। पीछे-पीछे मोहनदास भी दौड़ा आया। मोहनदास को पता था कि वह तो स्वयं बालाजी हैं। कान्ही भी मोहनदास से बालाजी के दर्शन करने की जिद करने लगी। मोहनदास ने बहन को धैर्य रखने की सलाह दी। लगभग दो महीने बाद साधु फिर से नारायण हरि बोलता हुआ सुनाई दिया। आवाज को सुनकर कान्हीं दौड़ी दौड़ी मोहनदास के पास गई।
मोहनदास दरवाजे पर पहुंचा तो देखा कि वह साधु बालाजी ही है। जो की वापस जा रहे थे। मोहनदास तेजी से उनके पीछे दौड़ा और उनके चरणों में लेट गया। मोहन ने देरी से आने के लिए साधु से क्षमा मांगी। तब साधु ने बालाजी के वास्तविक रूप में प्रकट होकर मोहनदास को दर्शन दिए और कहा तुमने सच्चे मन से मुझे सदैव याद किया है। तुम्हारी निस्वार्थ भक्ति से मैं बहुत खुश हूं। इसलिए मैं तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण करूंगा। बोलो तुम्हें क्या चाहिए यह सुनकर मोहन ने बालाजी से आग्रह किया कि आप मेरी बहन को दर्शन दीजिए।
'सालासर स्थान पर विराजमान रहूंगा'
बालाजी ने यह आग्रह स्वीकार कर लिया और कहा मैं पवित्र आसन पर विराजमान होऊगा। मिश्री, खीर, चूरमा का भोग स्वीकार करूंगा। मोहनदास प्रेम सहित बालाजी को अपने घर ले आए। बहन ने बड़ी कृतज्ञता से उनके लिए मनपसंद भोजन करवाया। बहन-भाई की निस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न होकर बालाजी ने कहा की जो कोई भी श्रद्धा सहित मुझे भेंट देगा मैं उसे प्रेम पूर्वक ग्रहण करूंगा और अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करूंगा। बालाजी ने कहा मैं हमेशा के लिए सालासर स्थान पर विराजमान रहूंगा। ऐसा कहकर बालाजी अंतर्ध्यान हो गए।
मोहनदास मौन व्रत धारण कर शमी पेड़ के नीचे आसन लगाकर बैठ गया। ऐसा करते देख लोग उन्हें पागल समझने लगे। एक दिन जब वो पेड़ के नीचे तपस्या कर रहे थे। तभी एक जाट का लड़का फल तोड़ने के लिए उस वृक्ष पर चढ़ गया। घबराहट में लड़के से कुछ फल के उनके ऊपर आ गिरा। उन्होने सोचा कि कहीं कोई पक्षी घायल ना हो। उन्होंने ऊपर की ओर देखा तो वहां एक लड़का भयभीत खड़ा था। उन्होंने लड़के को सहज होने को कहा। उस लड़के ने उनको बताया कि मां के मना करने पर भी पिताजी ने उसे शमी फल लाने को कहा है और ये भी कहा है कि वह पागल तुझे खा थोड़े जाएगा।
तब मोहनदास ने कहा कि अपने पिता से कहना इन फलों को खाने वाला व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। जाट ने उनकी बात को मजाक में लिया। किंतु,फल खाते ही जाट की मृत्यु हो गई। इस बात को सुनकर आसपास के लोग बाबा मोहन दास के प्रति भक्ति भाव से देखने लगे। बाद में उनकी ऐसी अनेक चमत्कारी घटनाओं ने उनको दूर-दूर तक विख्यात कर दिया। बाबा मोहन दास ने सालासर में बालाजी का भव्य मंदिर बनवाने का संकल्प किया।
सालासर बालाजी की प्रतिमा कहा से आई
असोटा गांव में एक किसान सुबह जल्दी अपना खेत जोत रहा था। खेत में हल चलाते समय उसका हल किसी वस्तु से टकराया। उसने खोद कर देखा तो वहां एक मूर्ति निकली। उसने मूर्ति को निकाल कर एक और रख दिया और उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। वह अपने काम में लग गया। अचानक उसके पेट में दर्द हुआ। वह दर्द से छटपटाने लगा और नीचे गिर गया। उसकी पत्नी वहां आई तो उसने उसे मूर्ति के निकलने और अचानक पेट में तेज दर्द होने की बात बताई। किसान की पत्नी बुद्धिमान थी। उसने उस मूर्ति को आदरपूर्वक अपने आंचल से साफ किया। उसने देखा के यह तो राम लक्ष्मण को कंधे पर लिए वीर हनुमान की दिव्य झांकी हैं।
तब उसने काले पत्थर की उस प्रतिमा को एक पेड़ के नीचे स्थापित किया और वहां प्रसाद चढ़ाया अपराध के लिए क्षमा याचना की। किसान का दर्द ठीक हो गया। इस चमत्कार की खबर सुनकर, असोटा का ठाकुर चंपावत उनके दर्शन को आया और उस मूर्ति को अपनी हवेली में ले आया। उसी रात ठाकुर को बालाजी ने सपने में दर्शन दिए और मूर्ति को सालासर पहुंचने की आज्ञा दी।
ठाकुर चंपावत ने अपने कर्मचारियों की सुरक्षा में मूर्ति को सालासर की ओर विदा कर दिया। उसी रात मोहनदास को भी बालाजी ने दर्शन दिए और कहा मैं अपना वचन निभाने के लिए काले पत्थर की मूर्ति के रूप में आ रहा हूं। ठाकुर सलाम सिंह व अनेक ग्रामवासियों बाबा मोहनदास जी के साथ मूर्ति का स्वागत किया। सन 1754 ई में शुक्ल पक्ष नवमी को शनिवार के दिन विधि विधान से बालाजी की मूर्ति स्थापित की गई।
दाढ़ी मूछ वाले हनुमान जी की प्रतिमा कैसे आई
एक बार की बात है जब मोहनदास भजन में लीन थे। तब उन्होंने बालाजी का घी और सिंदूर से श्रृगार कर दिया और उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं हुआ। उसी समय श्री राम और लक्ष्मण को धारण किए हुए बालाजी अदृश्य हो गए। उनके स्थान पर दाढ़ी मूंछ वाले हनुमान जी के दर्शन होने लगे।
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