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Eklingji Temple Udaipur: राजस्थान के उदयपुर जिले के कैलाशपुरी में स्थित एकलिंगजी महादेव मंदिर का इतिहास पौराणिक है। कहा जाता है कि एकलिंगजी मंदिर का मौजूदा ढांचा मध्यकाल में तैयार किया गया था।

Eklingji Temple: राजस्थान में कई धर्मों के देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हिंदू धर्म के शक्तिपीठ और त्रिलिंग मंदिर भी शामिल हैं। वैसे तो राजस्थान को राजा-महाराजाओं की धरती कहा जाता है। लेकिन, इसके साथ ही यह राज्य धार्मिक स्थलों के लिए भी दुनियाभर में मशहूर है। अगर राजस्थान के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों की बात करें तो बिरला मंदिर, करणी मंदिर, गलताजी मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, अंबिका माता मंदिर, मेहंदीपुर बालाजी मंदिर और एकलिंगजी महादेव मंदिर में सालों भर भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

एकलिंगजी महादेव को चतुर्मुखी शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। इसमें चार मुखों को चार देवताओं का प्रतीक माना जाता है। आज के इस लेख के माध्यम से हम एकलिंगजी महादेव मंदिर का इतिहास और इसकी मान्यता के बारे में जानेंगे।

पौराणिक एकलिंगजी महादेव मंदिर की कहानी

अगर आप राजस्थान के धार्मिक स्थलों की यात्रा करना चाहते हैं और एकलिंगजी महादेव मंदिर में मत्था नहीं टेकते तो आपकी यात्रा अधूरी रह सकती है। यह हम नहीं बल्कि धर्म के जानकारों का कहना है। इसके पीछे कई धार्मिक तथ्य दिए गए हैं। यह भी हम आगे जानेंगे। बहरहाल, हम आपका ध्यान इस मंदिर के इतिहास के पन्नों की ओर दिलाना चाहते हैं। राजस्थान के उदयपुर जिले के कैलाशपुरी में स्थित एकलिंगजी महादेव मंदिर का इतिहास पौराणिक है।

कहा जाता है कि ईसा. से कई साल पहले यह मंदिर लकुलीश संप्रदाय के अधीन था। मालूम हो कि इस तथ्य को तब बल मिला जब यहां 971 ईस्वी का एक शिलालेख मिला। लेकिन, इसे लेकर अलग-अलग मत रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि एकलिंगजी मंदिर का मौजूदा ढांचा मध्यकाल में तैयार किया गया था। हालांकि, समय के साथ पूजा-पाठ के तौर-तरीकों में भी बदलाव देखने को मिले हैं।

एकलिंगजी मंदिर के बारे में इतिहासकारों के शब्द

एकलिंगजी महादेव मंदिर के पौराणिक इतिहास को जानने के लिए हमें लोक संस्कृति और इतिहास के जानकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू की बातों पर गौर करना होगा, जो इस मंदिर के सभी रहस्यों को पुख्ता करती हैं। इस मंदिर के पौराणिक इतिहास से जुड़े तथ्यों पर डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू कहते हैं कि वर्तमान मंदिर का निर्माण महारावल समरसिंह ने 1288 के शासनकाल में करवाया था। मंदिर के निर्माण के प्रति महारावल समरसिंह की गहरी आस्था थी। इसके निर्माण के दौरान गोपनीयता का भी ख्याल रखा गया था। उस काल में इस मंदिर को शिवराशि के मंदिर के मुख्य देवता के रूप में पूजा जाता था।''

एकलिंगजी महादेव मंदिर का इतिहास

एकलिंगजी मंदिर का इतिहास पौराणिक है। इस मंदिर के इतिहास पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। हालांकि इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का एक शिलालेख महाराणा रायमल के शासनकाल (12 मार्च 1489 ई।) से मेल खाता है। इतिहासकार कहते हैं कि इस मंदिर में पूजा और उपहार देने की पहली शुरुआत मेवाड़ के महाराणा हमीर ने की थी। इस पर डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू आगे कहते हैं कि, "उस काल में यहां एक शैव तपस्वी हरित ऋषि रहते थे। तपस्वी होने के अलावा, वे सेना के कुशल नेता और सफल प्रशासक थे।

पौराणिक बातों के अनुसार, उनकी भक्ति और कार्य से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपार धन का आशीर्वाद दिया। परिणामस्वरूप, उनके नेतृत्व में, वे मेवाड़ के राजाओं के साथ मिलकर पश्चिमी भारत को बाहरी शक्तियों के प्रभाव से बचाने में सफल रहे। राजा, महाराजाओं और विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों की इस मंदिर में आस्था है। सभी लोग मंदिर में भक्ति भाव से पूजा करते आ रहे हैं।

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