Sain Jayanti: संत सेन जी की जयंती के अवसर पर जोधपुर जिले में भक्तों ने शोभायात्रा निकाली। यात्रा में हजारों लोग शामिल रहे। इसको लेकर यातायात पुलिस और प्रशासन द्वारा पुख्ता इंतजाम भी किए गए। इसके लिए यातायात व्यवस्था में भी कई बदलाव किए गए है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको संत सेन जी के जीवन से जुड़ी एक रोचक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने लाखों लोगों को सही राह दिखाई और जीवन में अच्छा कार्य करने की प्रेरणा दी।
संत सेन जी की कथा
संत शिरोमणि सेन महाराज का जन्म विक्रम संवत 1557 में सेनपुरा नामक स्थान पर चन्दन्यायी के घर हुआ था, उनके बचपन का नाम नंदा था। सेन महाराज एक नाई थे और वे राजा वीर सिंह के दरबार में मालिश करने का कार्य, बाल और नाखून काटने का काम किया करते थे। उस समय भक्तों की एक खास मंडली हुआ करती थी, सेन महाराज उस मंडली में शामिल हो गए और धिरे-धिरे भगवान में लीन होने लगे। भक्ति रस में रमण जाने के कारण वे राजा के दरबार में काम करना ही भूल जाते थे। माना जाता है कि खुद भगवान राजा के दरबार में पहुंचकर उनका कार्य कर देते थे।
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भगवान की सेवा से राजा इतने प्रसन्न हो गए थे, कि उनकी सेवा के चर्चे पूरे नगर में फैलने लगे थे। एक दिन जब सेन महाराज को होश आया तब उन्हें पता चला कि वे राजा के दरबार में जाना ही भूल गए। वे डरते डरते राजा के दरबार में पहुंचे वहां एक सैनिक ने उन्हें रोककर पूछा कुछ सामान भूल गए हो क्या, यह सुनकर महाराज बोले कि मैं तो दरबार आया ही नहीं, इसपर सैनिक बोला तुम्हारी सेवा के चर्चें तो पूरे नगर में हो रहे है। यह सुनकर महाराज को यकीन हो गया कि उनके बदले भगवान भेष बदलकर राजा की सेवा करने जाते थे।
अहिंसा व प्रेम का संदेश
संत सेन महाराज हमेशा से दयालु, विनम्र और ईश्वर में विश्वास रखने वाले थे। उन्होंने लोगों को गृहस्थ जीवन के साथ भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। वे हर जीव में भगवान का दर्शन करते और अहिंसा व प्रेम का संदेश देते रहे।