Soni Ji Ki Nasiya: राजस्थान की धार्मिक भूमि पर आपको कई प्राचीन जैन मंदिर मिल जाएंगे। प्रदेश के हर शहर में अलग-अलग जैन मंदिर स्थित है, जो अपनी पौराणिक कथाओं के लिए जानें जाते हैं। आज हम इन्हीं प्राचीन जैन मंदिरों में से एक सोनी जी की नसिया की बात करेंगे। यह मंदिर अलरव शहर की धरोहर में से एक है, जो कई सालों से अपनी पहचान बनाएं हुए है। सैलानियों की सूची में यह मंदिर हमेशा शामिल रहता है। इस मंदिर की सुंदरता देखने बनती है। साथ ही इस मंदिर को “स्वर्णिम अयोध्या” यानि सोने की अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर का इतिहास
सोनी जी की नसिया का निर्माण राय बहादुर सेठ मूलचंद के द्वारा 10 अक्टूबर 1864 को कराया गया था। इसके बाद साल 1865 में में अग्निदेव की छवि के साथ खोला गया था। अग्निदेव को जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से पहला तीर्थंकर माना जाता है। मंदिर के आस पास लाल रेत के पत्थर बने हैं, इसी कारण से इस मंदिर को लाल मंदिर के नाम से जाना जाता है। साल 1895 में इस मंदिर को स्वर्ण नगरी के मंदिर से जोड़ दिया गया था, जिसके बाद से ही इस मंदिर को स्वर्णिम अयोध्या के नाम से जाने लगा।
मंदिर की सुरंदता
मंदिर के निर्माण के लिए लाल पत्थर का इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें करौली से लाया गया था। इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको एक विशाल गेट दिखाई देगा जिसका नाम गोपुरम है। इस मंदिर को दो भागों में बांटा गया है, जिसमें पहले भाग में भगवान आदिनाथ की मूर्ति स्थापित है, वहीं दूसरे हिस्से में एख संग्रहालय और एक हॉल बनाया गया है। इस संग्रहालय में भगवान आदिनाथ के जीवन को बड़ी सुंदरता से दिखाया गया है।