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Rajasthan Karni Mata Temple: राजस्थान में वैसे तो क धार्मिक स्थल हैं, लेकिन उनमें से एक सबसे प्रसिद्ध है करणी माता का मंदिर। इस मंदिर को कई और नामों से भी जाना जाता है। चलिए आपको इस मंदिर का इतिहास बताते हैं।

Rajasthan Karni Mata Temple: करणी मां का जन्म राजस्थान की पवित्र भूमि पर हुआ था। यह क्षेत्र देवी देवताओं और संत महात्माओं के प्रति गहरी आस्था से जुड़ा है। पहले राजस्थान की जनता देवी देवताओं को विशेष महत्व देती थी। हर गांव के हर घर में देवी की पूजा होती थी। राजस्थान क्षेत्र के लोग सदैव मां दुर्गा की पूजा किया करते थे। बताया जाता है कि इस जन्म से पहले करणी माता का पूर्व जन्म माता नरसिंह के रूप में हुआ था। माता नरसिंह एक महान और एक परोपकारी महिला थी। जो हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थी। 

सुआप गांव में हुआ था माता का जन्म

पिछले जन्म में उन्होंने कठिन समय में भूख से पीड़ित लोगों की सहायता की थी। उनके इस महान कार्य के कारण देवी शक्ति ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह अगले जन्म में और भी बड़ी शक्तियों के साथ पृथ्वी पर आएंगी। करणी मां  के पिता मेहाजी जो कीनिया शाखा के चारण थे। उनको मेहा मांगलिया से सुआप नामक गांव मिला था। जो जोधपुर जिले के फौलादी तहसील में स्थित है।  सुआप गांव मिलने से पहले यह गांव सुआप ब्राह्मण की ढाणी कहलाता था। बाद में मेहाजी ने इस गांव का नाम बदलकर सुआप रखा था। इसी गांव में श्री करणी माता का जन्म हुआ। मेहाजी की पत्नी का नाम देवलदेवी था।

कैसे हुआ मां करणी का जन्म

मेहाजी को पांच पुत्रिया थी। इस कारण मेहाजी उदास रहा करते थे। एक दिन उन्होंने आदिशक्ति हींगलाज माता की यात्रा की जो कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है। मां भगवती ने उनकी श्रद्धा और भक्ति से खुश होकर उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा मेहाजी ने हिंगलाज मां को प्रणाम कर प्रार्थना की मैं चाहता हूं मेरा नाम आगे बढ़े। तब मां हिंगलाज तथास्तु कहकर अंतर ध्यान हो गई। मेहाजी की पत्नी फिर से गर्भवती हुई। इस बार उनको पूरी आशा थी कि इस बार उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। इस खुशी में  मेहाजी ने पत्नी के गर्भावास्था समय में  सेवा के लिए दो दासियों को लगा दिया।

मां दुर्गा के विशाल रूप के हुए दर्शन 

किंतु 10 महीने होने के बाद भी बच्चे का जन्म नहीं हुआ। इंतजार करते 15 महीने बीत गए। इस कारण सभी परिवार वाले चिंता में आ गए थे। आखिर में 20 महीने में बीत गए तब एक दासी छोड़ कर चली गई। परंतु एक दासी अभी भी उनकी सेवा में लगी रही। एक दिन मां दुर्गा ने देवलदेवी को सपने में दर्शन दिए और कहां की एक महीने बाद में जन्म लूंगी। 21 महीने बाद मां करणी ने विक्रम संवत 1444 को सुआव गांव में शुक्रवार के दिन जन्म लिया। जन्म के समय उनकी मां मूर्छित हो गई थी। जब उनको होश आया तो उन्होंने मां दुर्गा के विशाल रूप के दर्शन हुए। देवलदेवी को आभास हुआ कि उन्हें एक कन्या हुई है।

 कन्या को देख वह फिर से उदास हो गई। मेहाजीअपनी बहन से पूछते हैं कि क्या हुआ है तो उनकी बहन इशारा करती है कि फिर से पत्थर आ गया अर्थात लड़की हो गई। ऐसा कहते ही उनके हाथ की पांचो उंगलियां जुड़ी रह जाती है। उस युग में लड़की की जन्म को अशुभ समझा जाता था। जन्म के तीसरे दिन बच्ची का नामकरण संस्कार हुआ। नाम रिघुबाई रखा गया। नामकरण के बाद ही उनके पिता की रिद्धि सिद्धि बढ़ने लगी। रिघुबाई के जन्म के साथ पिता की दिन प्रतिदिन समृद्धि भी बढ़ने लगी।

रिघुबाई से करणी नाम कैसे और क्यूं पड़ा

एक दिन रिघुबाई की बुआसा पीहरआई हुई थी। 6 पुत्री में से वह रिघुबाई से ज्यादा प्रेम करती थी। एक दिन वह रिघुबाई को अपने हाथों से स्नान करा रही थी। तब एक हाथ से बुआ रिघुबाई को अच्छे से स्नान नहीं करा पा रही थी। तब रिघुबाई ने पूछा आप दोनों हाथों से स्नान क्यों नहीं करा रही है। तब बुआ ने उनके जन्म की सारी घटना सुनाई। रिघुबाई ने बुआ का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा आप का हाथ तो बिल्कुल ठीक है क्यों बहाना लगा रही है। यह कहते ही बुआ का हाथ बिल्कुल ठीक हो गया। बुआ अत्यधिक प्रसन्न हुई और अपने भाई व भाभी को चमत्कार की सारी घटना सुनाई। तब बुआ ने मेहाजी को कहा इस कन्या को साधारण नहीं समझे। 

यह संसार में कुछ करणी दिखाने आई है। तब  बुआ ने रिघुबाई से नाम बदलकर  करणी रख दिया। राजस्थान में करणी माता की पूजा की जाती है। राजस्थान के बीकानेर में करणी माता का मंदिर स्थित है। बीकानेर में करणी माता को दुर्गा मां का अवतार माना जाता है। करणी माता ने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव रखी थी। करणी माता को दाढ़ी वाली डोकरी, चूहो की देवी, आवड़ माता और हिंगलाज माता का अवतार कहा जाता है।

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